Sunday, September 27, 2009

नक्सली के कारण नहीं हो पा रही बाघों की गणना

नई दिल्ली, एजेंसी : अलगाववादी गतिविधियों के कारण देश में बाघों की गणना का काम प्रभावित हो रहा है और नक्सल प्रभावित इलाकों में इनके संरक्षण की गतिविधियां काफी कठिन हो गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि 38 बाघ अभ्यारण्यों में से सात अभयारण्य में नक्सली मौजूद हैं जिसका अर्थ यह है कि काफी समय से बाघों की गणना का आधिकारिक कार्य नहीं हुआ है। जाने माने वन्यजीव संरक्षक माइक पांडे ने कहा कि यह क्षेत्र प्रतिबंधित श्रेणी में आते हैं और यहां तक पहुंच सुगम नहीं है। उन्होंने कहा कि नक्सलियों की भय के वजह से संरक्षणवादी या सरकारी अधिकारी इन इलाकों में जाने से बचते हैं। इसके कारण हमें खतरे की स्थिति वाले जीवों की वास्तविक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है। पांडे ने कहा कि देश के उत्तरी इलाके में शूटिंग के दौरान मुझे प्रतिबंधित संगठन के नाराज युवा लोगों मिलने का मौका मिला। इन लोगों को वन्य जीवन की समस्याओं के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। भारतीय वन्यजीवन संस्थान (डब्ल्यूडब्ल्यूआई) ने अपने ताजा बाघ गणना रिपोर्ट में कहा है कि अभयारण्य का इलाका नक्सलियों की भारी मौजूदगी और प्रभाव वाला है और बाघों की घटती संख्या का कारण इनके शिकार से लेकर आवास क्षेत्र का कम होता दायरा हो सकता है। दुनिया में बाघों की संख्या अब 3,000 रह गई है जिसमें भारत में।,400 बाघ हैं। राष्ट्रीय बाघ गणना के आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2008 तक देश में महज।,411 बाघ बचे थे जबकि यह संख्या 1997 में 3,508 रही थी। हालांकि इन आंकड़ों पर भरोसा करना बेहद कठिन है क्योंकि कई इलाकों में बाघों की गणना हुई ही नहीं या सिर्फ खानापूर्ति के रूप में हुई।भारतीय वन्यजीवन संरक्षण सोसाइटी की बेलिंडा राइट के अनुसार भारत में एक तिहाई वन्यजीवन क्षेत्र या बाघ आवास क्षेत्र में अलगाववादियों की मौजूदगी है जिसके कारण बाघों की प्रजनन गतिविधियां अव्यवस्थित होती हैं और इससे उनकी संख्या पर असर पड़ता है।

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