Monday, September 28, 2009

जाति समस्या को मानवाधिकार के तहत लाना नामंजूर

-संरा मानवाधिकार परिषद की कोशिश पर भारत ने जताया ऐतराज
-नेपाल को भी अपने पाले में लाने की कोशिश करेगा भारतीय खेमा
-कांग्रेस और भाजपा ने भी जताया विरोध
नई दिल्ली
जाति आधारित भेदभाव को मानवाधिकार उल्लंघन के दायरे में लाने की संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की कोशिश को भारत से समर्थन मिलने के आसार कतई नहीं हैं। डरबन में 2001 में संरा की ऐसी ही एक कोशिश को परवान चढऩे से रोक चुके भारतीय खेमे ने फिर से अपने प्रयास को तेज कर दिया है। संरा में तैनात भारतीय कूटनीतिकारों ने तो पहले ही इसके विरोध में मुहिम शुरू कर दी है। संरा मानवाधिकार परिषद ने जाति के आधार पर भेदभाव के मामलों को मानवाधिकार उल्लंघन के दायरे में लाने का मन बना लिया है। पिछले दिनों इसके लिए परिषद ने तर्क दिया कि जाति एक ऐसा पहलू है जिसके आधार पर तकरीबन बीस करोड़ लोगों को भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। भारत ने जेनेवा में विश्व की इस ताकतवर संस्था को साफ बता दिया है कि उसके मानवाधिकार परिषद की इस कोशिश से जाति आधारित मुद्दों के अंतरराष्ट्रीयकरण का पूरा खतरा है। उसकी दलील है कि वह जाति आधारित भेदभाव का कड़ाई से विरोध करता है। इसके लिए भारतीय संविधान में हर नागरिक को समानता का अधिकार भी प्राप्त है। आने वाले दिनों में अपना पक्ष मजबूत करने के लिए सरकार के काबिल कूटनीतिकारों और मानवाधिकार विशेषज्ञों को संरा के साथ बातचीत करने के लिए लगाया जाएगा। जानकारों का मानना है कि भारत को अनुचित तरीके से परेशान करने की ताक में रहने वाले पाकिस्तान जैसे मुल्कों को भी इससे अपने मंसूबों में कामयाब होने का मौका मिलेगा। इस मामले में संरा से सहमत हो रहे अकेले दक्षिण एशियाई मुल्क नेपाल को भी भारत समझाने का प्रयास करेगा। भारत ने यह तर्क भी पेश किया है कि जाति आधारित अन्याय के मामले को अंतरराष्ट्रीय मंच पर तब निपटाया जाना उचित है जब इसका हल तलाशने में किसी भी देश का घरेलू तंत्र पूरी तरफ विफल हो चुका हो। ध्यान रहे यही तर्क भारत ने डरबन में भी दिया था जब जातीय भेदभाव को मानवाधिकार उल्लंघन मानने वाले प्रस्ताव को पारित करने की प्रकिया चल रही थी। भारतीय खेमे का यह भी कहना है कि नस्लीय भेदभाव और जाति आधारित दुव्र्यवहार को अलग-अलग देखने की जरूरत है। बदसलूकी या भेदभाव के अपराधों में दोनों एक-दूसरे से एकदम भिन्न हैं। सरकार के रणनीतिकार मान रहे हैं कि संरा में प्रस्ताव को कानूनी जामा पहना दिए जाने से जाति आधारित अन्याय के मामलों को लेकर अंतरराष्ट्रीय दखल बढऩे का अंदेशा है। कांग्रेस ने भी सरकार को साफ संकेत दिया है कि उसे किसी भी कीमत पर जातिगत भेदभाव के मामलों को मानवाधिकार उल्लंघन के दायरे में लाने की कोशिश पर एतराज है। पार्टी ने कहा है कि भारत में हर नागरिक को समानता का अधिकार प्राप्त है और इसमें कोई बाधा होती है तो उसके लिए घरेलू स्तर पर निपटने के लिए कानून और नियम हैं। कांग्रेस ने कहा है कि विश्व समुदाय के दूसरे देशों में अपना अलग तंत्र है और अलग जातिवादी व्यवस्था है। लिहाजा उन्हें अपनी व्यवस्था भारत पर थोपने का कोई अधिकार नहीं है।

जातीय मामलों को मानवाधिकार से जोडऩे के पक्ष में नहीं है भाजपा
नई दिल्ली
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जातीय मामलों को मानवाधिकार से जोडऩे की मुहिम पर भारत में तीखी प्रतिक्रिया उभरने लगी है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने दो टूक कहा है कि इस मामले में भारतीय संविधान एकदम स्पष्ट व पूरी तरह सकारात्मक है और देश में उसी के आधार पर सामाजिक समानता के लिए तमाम कायदे कानून बनाए गए हैैं। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र का मसौदा समझ से परे है। उसे तो भारत को 'रोल माडलÓ के रूप में स्वीकार करते हुए दुनिया को दिखाना चाहिए कि यहां पर किस तरह समानता के लिए काम किया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जातीय मामलों को मानवाधिकार उल्लंघन के तहत शामिल करने की कोशिशों का विरोध करते हुए भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा कि सबसे पहले तो यह स्पष्ट होना चाहिए कि किन आधारों पर संयुक्त राष्ट्र ऐसा करने जा रहा है। उसकी सोच के पीछे की स्थितियां क्या हैं? दुनिया में जो भी सोच हो, लेकिन भारतीय संविधान इस बारे में बेहद सकारात्मक है और उसमें जातीय समानता लाने के लिए वंचित तबकों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है। इसके परिणाम भी सकारात्मक रहे हैं। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि इस तरह का कोई प्रस्ताव भारत पर थोपा नहीं जाएगा, लेकिन यदि ऐसा किया गया भाजपा इसकी भत्र्सना करेगी और इसका विरोध भी किया जाएगा।

Sunday, September 27, 2009

महतो की गिरफ्तारी पर पत्रकार खफा

प्रेस क्लब ने पत्रकार के वेश में महतो की पुलिस गिरफ्तारी की निंदा की
कोलकाता, 27 सितंबर भाषा
कोलकाता प्रेस क्लब ने आदिवासी नेता छत्रघर महतो की सीआईडी कर्मियों द्वारा पत्रकार के वेश में गिरफ्तार करने के तरीके को लेकर आज निंदा की और मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को इस संबंध में एक विरोधनामा पत्र सौंपा। क्लब ने अपने पत्र में लिखा, '' पुलिस को पत्रकार का वेश धारण कर काम करने के बारे में हम चिंतित है। यह हमारे पेशे के लिए बहुत अपमानजनक है। मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र पर कोलकाता प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रेमानंद घोष और सचिव काजी गुलाम जी सिद्दीकी के हस्ताक्ष हैं। पत्र में कहा गया है कि प्रेस रिपोटर की पहचान का इस्तेमाल कर पुलिस ने जिस तरह से यह काम किया वह इस पेश की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है। उल्लेखनीय है कि महतो का माओवादियों से कथित तौर पर संबंध है और पुलिस ने कल पत्रकार के वेश में उसे गिरफ्तार किया था।

ट्रांसपोर्ट कर्मियों की 33वें दिन भी जारी रही हड़ताल

- एसआरटीसी की राज्यव्यापी अनिश्चितकालीन
-चार महीने से नहीं मिला है वेतन
-अब तक साढ़े तीन करोड़ का
नुकसानजम्मू, जागरण संवाददाता : स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन (एसआरटीसी) कर्मचारियों की जारी अनिश्चितकालीन राज्यव्यापी हड़ताल रविवार को 33वें दिन पहुंच गई। कर्मचारियों को पिछले चार महीने से वेतन नहीं मिला है। लेकिन राज्य सरकार भुखमरी के शिकार हो चुके कर्मचारियों को अभी तक वेतन नहीं दे सकी है। कर्मचारियों के समर्थन में रविवार को लगातार चौथे दिन भी अन्य राज्यों के कारपोरेशन की बसों ने राज्य में प्रवेश नहीं किया। रविवार अवकाश होने के कारण आज कर्मचारियों ने कहीं भी विरोध प्रदर्शन नहीं किया। एसआरटीसी कर्मचारी पिछले चार महीनों के बकाया वेतन सहित अन्य मांगों को पूरा न किए जाने के विरोध में पिछले 33 दिन से राज्यव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। कारपोरेशन को अब तक 3.50 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हो चुका है। यूनियन के चेयरमैन शकील अहमद कुचे ने बताया कि 23 मार्च 2008 को सरकार से लिखित समझौता हुआ था कि भविष्य में कर्मचारियों को नियमित रूप से वेतन की अदायगी की जाएगी, इसके बावजूद सरकार अपने वादे पर खरी नहीं उतरी। फलस्वरूप कर्मचारियों को अपना हक पाने के लिए आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा। उन्होंने कहा कि जब तक कर्मचारियों के साथ इंसाफ नहीं हो जाता, उनका आंदोलन जारी रहेगा। यूनियन ने आने वाले दिनों में अपने आंदोलन को और तेज करने का भी ऐलान किया है।

नक्सली के कारण नहीं हो पा रही बाघों की गणना

नई दिल्ली, एजेंसी : अलगाववादी गतिविधियों के कारण देश में बाघों की गणना का काम प्रभावित हो रहा है और नक्सल प्रभावित इलाकों में इनके संरक्षण की गतिविधियां काफी कठिन हो गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि 38 बाघ अभ्यारण्यों में से सात अभयारण्य में नक्सली मौजूद हैं जिसका अर्थ यह है कि काफी समय से बाघों की गणना का आधिकारिक कार्य नहीं हुआ है। जाने माने वन्यजीव संरक्षक माइक पांडे ने कहा कि यह क्षेत्र प्रतिबंधित श्रेणी में आते हैं और यहां तक पहुंच सुगम नहीं है। उन्होंने कहा कि नक्सलियों की भय के वजह से संरक्षणवादी या सरकारी अधिकारी इन इलाकों में जाने से बचते हैं। इसके कारण हमें खतरे की स्थिति वाले जीवों की वास्तविक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है। पांडे ने कहा कि देश के उत्तरी इलाके में शूटिंग के दौरान मुझे प्रतिबंधित संगठन के नाराज युवा लोगों मिलने का मौका मिला। इन लोगों को वन्य जीवन की समस्याओं के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। भारतीय वन्यजीवन संस्थान (डब्ल्यूडब्ल्यूआई) ने अपने ताजा बाघ गणना रिपोर्ट में कहा है कि अभयारण्य का इलाका नक्सलियों की भारी मौजूदगी और प्रभाव वाला है और बाघों की घटती संख्या का कारण इनके शिकार से लेकर आवास क्षेत्र का कम होता दायरा हो सकता है। दुनिया में बाघों की संख्या अब 3,000 रह गई है जिसमें भारत में।,400 बाघ हैं। राष्ट्रीय बाघ गणना के आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2008 तक देश में महज।,411 बाघ बचे थे जबकि यह संख्या 1997 में 3,508 रही थी। हालांकि इन आंकड़ों पर भरोसा करना बेहद कठिन है क्योंकि कई इलाकों में बाघों की गणना हुई ही नहीं या सिर्फ खानापूर्ति के रूप में हुई।भारतीय वन्यजीवन संरक्षण सोसाइटी की बेलिंडा राइट के अनुसार भारत में एक तिहाई वन्यजीवन क्षेत्र या बाघ आवास क्षेत्र में अलगाववादियों की मौजूदगी है जिसके कारण बाघों की प्रजनन गतिविधियां अव्यवस्थित होती हैं और इससे उनकी संख्या पर असर पड़ता है।

Saturday, September 19, 2009

मैं घास हूं...आपके हर किए धरे पर उग आऊंगा

मैं घास हूं
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा
बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर
बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मुझे क्‍या करोगे
मैं तो घास हूँ
हर चीज़ पर उग आऊंगा
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी...दो साल... दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्‍टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है
मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूंगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा।
अवतार सिंह पाश (पंजाबी कवि)