Tuesday, October 13, 2009

मीडिया मालिकान पत्रकारों को बंधुआ मजदूर समझते हैं


क्यों पत्रकारों को कम वेतन मिलना चाहिए
खबरों के सिमटते कारोबार को रोक पाना मुमकिन है, यदि पत्रकार अपने ग्राहकों के लिए मूल्य-निर्माण के प्रति प्रतिबद्ध हों और अपनी कंपनियों के स्तर को निर्धारित करने में शामिल हों।
-राबर्ट जी पीकार्ड, आक्सफोर्ड, इंग्लैंड
लोकतांत्रिक समाज की बेहतरी के लिए और सत्य के प्रति प्रतिबद्धता के कारण पत्रकारिता बेहद महत्वपूर्ण दायित्व है। सो, पत्रकार यह सोचना पसंद करते हैं कि इनका यह काम बेहद नैतिक या पवित्र हैं। इसलिए हर छंटनी के बाद या किसी अखबार के बंद होने की सूचना के बाद वे कहते हैं कि कोई अन्य बिजनेस माडल इस पवित्र कार्य की भरपाई नहीं कर सकता। पत्रकारों के तमाम दलीलों के बावजूद यह वास्तविकता है कि अधिकांश पत्रकार कम वेतन पाने के लायक हैं। दरअसल पारिश्रमिक मूल्यों के निर्माण के लिए मिलता है और साफ तौर पर यह कहा जा सकता है कि पत्रकार आजकल ये मूल्य सृजित नहीं कर पा रहे हैं। जब तक वे इस मूल मुद्दे को नहीं पकड़ते, तब तक ब्लागिंग या अन्य कोई छोटी आय उनके घटते हुए बिजनेस माडल के मसले को नहींहल कर सकता। नैतिक मूल्य आएंगे कहां से? नैतिकतावादी दार्शनिकों ने नैतिक मूल्यों के दो प्रकार तय किए हैं-मूलभूत और सहायक। मूलभूत मूल्यों में ऐसी चीजें शामिल हैं, जो अपने आप में सुंदर और अच्छी बातों को समाहित किए हुए हों। मसलन सुंदरता, सच और सद्भाव। सहायक मूल्य व्यवहार और उपलब्धियों से आता है। मसलन जागरुकता, समझदारी और धन। पत्रकारिता महज सहायक मूल्यों को जन्म देती है और पाठकों को जानकारियां देने के साथ-साथ सामाजिक क्रिया-कलाप में सहायक बनकर लोकतंत्र का मार्ग प्रशस्त करती है। इसलिए एक पत्रकार का आर्थिक मूल्य उसके काम की महत्ता और बहुमुखी क्षमता के विनिमय से जुड़ा रहता है। वह जो उत्पाद तैयार करता है, वह मूल्यपरक और अपने पाठकों के प्रति समर्पित होता है। पत्रकारिता जो मूल्य पैदा करती है, उस पर रोशनी डालें तो कई चीजें साफ तौर पर दिखती हैं। पत्रकारिता अपने पाठकों में कार्यकारी, भावनात्मक और अपनी बातें बेहतर ढंग से रखने लायक मूल्यों का विकास करती है। कार्यकारी मूल्य में समाहित हैं जरूरी सूचनाएं और विचार। भावनात्मक मूल्य चीजों, समाज से जुड़ी समझदारी और सुरक्षा से जुड़ी होती हैं। पहले सूचनाओं के श्रोत सीमित थे और मीडिया से जो खबरें, मूल्य वे ग्रहण करते थे उसके बाद उन्हें लगता था कि अखबार के विचारों और सशक्त दलीलों से उसके विचार पहले से अधिक सशक्त और समृद्ध हुए हैं। यह चीजें आर्थिक मूल्यों और प्रासंगिकता को भी तय करती हैं। मगर आज ऐसा नहीं है। आज सूचना के इतने श्रोत हैं कि पहले की तुलना में पत्रकारों और मालिकों का सूचना के माध्यमों पर पहले जैसा नियंत्रण नहीं रह गया है। संचालन, प्रकाशन और वितरण की लागत से जुड़ी दिक्कतों के कारण पहले अखबार चलाने वालों की संख्या सीमित थी। इस वजह से अखबारों की कीमतें आज की तुलना में ज्यादा थी। पर यह अब घटती जा रही हैं। क्योंकि अब सूचनाओं और खबरों का व्यापक स्त्रोत हमारे पास है। पत्रकारिता के जो सबसे प्राथमिक मूल्य हैं, वह पत्रकारों के परिश्रम के बुनियादी मूल्यों से आता है। दुर्भाग्य से वह मूल्य अब समाप्त होने के कगार पर हैं। समाचारों के मूल्य और विज्ञापन के मूल्यों से समग्र मूल्यों के मानदंड तय होते हैं। यद्यपि विज्ञापनों का अपना लक्षित समूह होता है इसलिए विज्ञापनदाताओं को पत्रकारीय सरोकारों से ज्यादा मतलब नहीं होता। उनका उसूल महज मुनाफा कमाना होता है। पत्रकारों के लिए आर्थिक मूल्य ज्यादा अहम नहीं रहा है, मगर अब उसमें बदलाव आ रहे हैं। पत्रकार किसी प्रोफेसर या इलेक्ट्रीशियन की तरह पेशेवर नहीं होते, जिन्हें अपने विषय में खास विशेषज्ञता हासिल हो। नतीजतन पत्रकारिता के प्राथमिक आर्थिक मूल्य अपने स्वयं के ज्ञान से नहीं मिलता। वह हासिल होता है दूसरों को सूचनाएं देने की प्रक्रिया के दरम्यान। इस पूरी प्रक्रिया में ऐतिहासिक महत्व के तीन बुनियादी कार्य स्त्रोतों की पहुंच, सूचनाओं के महत्व का निर्धारण और प्रभावशाली संप्रेषण में दक्षता आर्थिक मूल्य पैदा करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सूचना और ज्ञान कुदरती तौर पर तो उपलब्ध होते नहीं हैं, इसलिए स्रोतों की अधिकता सूचना प्राप्ति के लिए बेहद निर्णायक मामला हो जाता है। एक पत्रकार के पास आसानी से ऐसे अवसर उपलब्ध होते हैं जिनके मार्फत वे सत्ता संस्थानों या अन्य संस्थानों से सूचना हासिल करने में समर्थ होता है। यह काम कोई आम आदमी आसानी से नहींकर सकता है। असरकारी संप्रेषण के लिए भाषाई और कलात्मक दक्षता के अलावा तकनीक भी बेहद जरूरी है। मगर आज मीडिया में तकनीक का बोलबाला इतना अधिक बढ़ गया है कि इस वजह से पत्रकारों की व्यक्तिगत दक्षता का महत्व घट रहा है। परंपरागत रूप से पत्रकार और समाचार संस्थान सूचना स्रोतों, सूचनाओं तक पहुंच और तात्कालिक रूप से पेश करने की वजह से आर्थिक मूल्य सृजित करने में सफल रहे हैं। सूचना क्रांति ने परंपरागत तौर-तरीकों पर जबर्दस्त चोट की है। बगैर किसी खर्च के आज एक सामान्य पाठक भी खबरें जुटाने के साथ-साथ खबरों के निहितार्थ और उसकी पहलुओं की जांच कर सकता है। इसलिए जब तक पत्रकार अपने श्रम के मूल्यों का पुनर्निर्धारण नहींकरते तब तक वे अपनी आमदनी में इजाफा नहीं कर सकते। अधिक आमदनी के लिए जरूरी है कि पत्रकार अपने कार्यों में माहिरी पैदा करें। ज्यादातर पत्रकारों में एक जैसी खूबियां हैं, मसलन खबरें ढूंढने से लेकर प्रस्तुतिकरण और यहां तक कि सवाल भी तकरीबन एक जैसे ही होते हैं। इस वजह से लगभग एक जैसी स्टोरी ही देखने-सुनने और पढ़ने को मिलती है। इस सामान्यीकरण के कारण ही औसत पत्रकारों को कम वेतन मिलता है। इसके विपरीत अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ स्तंभकारों, कार्टूनिस्ट और पत्रकारों जैसे फाइनेंस रिपोर्टर आदि को अधिक मेहनताना मिलता है। पूरे समाचार उद्योग में खबर जुटाने की प्रक्रिया और तरीकों को एक बने-बनाए ढर्रे में पेश किया जाता है। नतीजतन उत्पाद में काफी हद तक एकरूपता दिखती है और अलग-अलग अखबारों में मामूली फर्क दिखाई देता है। इसके बावजूद ज्यादातर पत्रकार यह मानते हैं कि भले ही वह राजस्व की प्राप्ति में सहायक न हो सकें, लेकिन उनका कार्य बहुत अच्छा है। इसलिए आज के बेहद प्रतिस्पर्धी सूचना बाजार में वे अधिक मेहनताने की मांग करते हैं। इसके पीछे उनकी यह दलील भी है कि वह नैतिक मानदंडों के पक्षधर हैं। आज से डेढ़ सौ साल पहले पत्रकार बाजार के ज्यादा नजदीक हुआ करते थे। वे यह बात अच्छी तरह समझते थे कि वे बाजार में श्रम बेच रहे हैं। पत्रकारिता में व्यावसायिकता के आगमन से पहले अधिकांश पत्रकार न केवल समाचार लिखते थे, बल्कि बाजार में जाकर अखबार बेचते भी थे। तब कुछ पत्रकारों को ही नियमित नौकरी मिल पाती थी। पत्रकारों और सामाजिक प्रेक्षकों में इस उद्योग की व्यावसायिकता के सवाल पर बहस होती रहती थी। कार्ल मा‌र्क्स ने कहा था कि ''''प्रेस की आजादी की यह पहली शर्त है कि यह व्यापार में तब्दील न हो।'' इस चुनौती को स्वीकार करते हुए या तो समाचार उद्योग को वक्त के साथ चलना होगा खत्म होना पड़ेगा। यदि अखबार इस चुनौती का सामना कर पाता है, तो हमको पत्रकारिता के तौर-तरीकों और बेहतर लोगों के लिए रास्ते की तलाश करना होगा। जिनकी बदौलत आर्थिक मूल्य पैदा किया जा सके। पत्रकारिता को सूचनाओं के संकलन, प्रक्रिया और वितरण के नये तौर-तरीकों को खोजना होगा। इस प्रकार यह अपने पाठक, श्रोता और दर्शकों को ऐसी सामग्री उपलब्ध करा सकेगा, जो अन्यत्र नहीं मिलती। यह काम पर्याप्त महत्व का होगा और पाठक या श्रोता मूल्य देकर इन सूचनाओं का पाना चाहेंगे। यदि आर्थिक मूल्य विकसित होता है तो पत्रकार परंपरागत ढंग से काम नहीं कर सकते या अन्यत्र प्रकाशित समाचारों की रिपोर्टिग नहीं कर सकते। इनको कुछ नया करना होगा जो मूल्य पैदा करता है। इनको इस प्रकार की सूचनाएं और ज्ञान देना होगा जो पहले से ही कहीं उपलब्ध न हो या ऐसी सूचनाएं देनी होंगी जो पाठकों के लिए अधिक उपयोगी और प्रासंगिक होगी। एक पाठक से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह ऐसी खबरों के लिए मूल्य चुकाए, जो एक दिन पहले के आनलाइन संस्करण में प्रकाशित हो चुकी हैं या आज के हजारों अन्य अखबारों में प्रकाशित हैं। पाक कला पर केंद्रित मैगजीनों की तुलना करते हुए अखबार में पाक कला पर आधारित सामग्री प्रकाशित करने और टीवी पर दिखाए जाने वाले कुकिंग शो दर्शकों को अधिक मूल्यवान नहीं लगते। न ही पाठकों को आधी-अधूरी और अजीबोगरीब खबरों में कोई खास दिलचस्पी होती है, जो अक्सर दूसरी जगहों से जुड़ी होती हैं। कुछ न्यूज मैगजीनों ने इस परंपरागत ढर्रे को तोड़ा है और नए बदलावों के साथ विशिष्ट समाचार सामग्री प्रस्तुत कर रही हैं। घटनाओं और नई प्रवृत्तियों के सार को बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर रही है। यूएस न्यूज और व‌र्ल्ड रिपोर्ट ने इसके पाठकों और रैंकिंग संबंधी गतिविधियों की समीक्षा की है। दैनिक अखबारों को तथ्य और सामग्री की कमी के सवाल पर चुप नहीं बैठना चाहिए, बल्कि उसे विशिष्टताओं की ओर खास ध्यान देना चाहिए। उदाहरण के लिए ''द बोस्टन ग्लोब'' अखबार शिक्षा और स्वास्थ्य रिपोर्टिग के मामले में अगुआ समाचारपत्र माना जा सकता है, क्योंकि इसने अपने प्रसार क्षेत्र में उच्च शिक्षा और चिकित्सा संस्थानों से संबंधित बहुआयामी रिपोर्टो को प्रकाशित किया है। इस ढंग से यह अखबार पाठकों के लिए न केवल उपयोगी हो गया है, बल्कि यह अन्य प्रकाशनों को भी अपनी रिपोर्टो को बेच सकता है। इसी तरह, ''द डलास मार्निग न्यूज'' तेल और उर्जा के क्षेत्र में, ''द डेस मोइंस'' कृषि क्षेत्र में उत्कृष्ट रिर्पोटिग और ''द शिकागो ट्रिब्यून'' विमानों और उड्डयन संबंधी रिपोर्टो के प्रकाशन में विशेषज्ञता हासिल कर उपयोगी हो सकते हैं। स्थानीय समाचारों के प्रकाशन में गुणात्मक और मात्रात्मक रूप से सुधार करके प्रत्येक अखबार अग्रणी बन सकता है। किसी खास विधि से, अभ्यास, कार्य, योग्यता और बिजनेस माडल को बनाना आसान काम नहीं है, लेकिन इसकी खोज होनी चाहिए। यह केवल नई तकनीकों को अंगीकार करने का मसला नहीं है। आजकल पत्रकार पाठकों के लिए नई सामग्री की खोज, नई तकनीकों-मसलन वेबसाइटों, सोशल नेटवर्किंग, ब्लाग, माइक्रो ब्लाग आदि के माध्यम से करने से लगे हैं। जिससे अधिक पाठकों तक अपनी पहुंच बना सकें। हालांकि सूचनाओं और ज्ञान प्राप्ति के लिए ये नए माध्यम उपयोगी हैं। मगर इस माध्यम से जो मूल्य जोड़े जा रहे हैं, उस संदर्भ में यह खास तौर पर गौरतलब हो जाता है। इसकी वजह यह है कि जो इनसान इन सूचनाओं के प्रति जिज्ञासु हैं, वह इन तकनीकों के माध्यम से यह ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। सही मूल्यों के विकास और संरक्षण के लिए अखबारी संस्थान का सहयोगी रवैया भी जरूरी है, जिससे नए तौर-तरीकों की तलाश की दिशा में मदद मिलेगी। यह ऐसा मसला है जो पत्रकार, प्रबंधन पर नहीं छोड़ सकते। पत्रकारों और प्रबंधकों के लिए जरूरत इस बात की है कि वे सहयोगपूर्ण ढंग से ऐसे सामाजिक संबंध विकसित करें, जिसमें यह कार्य आसानी से हो सके। पत्रकारों के लिए यह भी जरूरी है कि वह उद्यमशील और नई योग्यताएं अर्जित करें, जिससे कि वे किसी परिवर्तन के लिए हर स्तर पर तैयार रहें। अखबार उद्योग के अवमूल्यन को रोका जा सकता है, लेकिन तभी जब पत्रकार पाठकों के बीच मूल्य अर्जित कर सकें और कंपनी की गतिविधियों में अपनी भूमिका बढ़ा सकें। -------------------------------------लेखक स्वीडन की जोनकोपिंग यूनिवर्सटी में मीडिया इक्नोमिक्स के प्रोफेसर हैं।

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